Saturday, 7 March 2020

वक्त ही वक्त की कीमत जानता है

एक प्राचीन कथा है........

 जंगल की राह से एक जौहरी
गुजरता था। देखा उसने राह में, एक कुम्हार अपने गधे
के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चल रहा है। चकित
हुआ! पूछा कुम्हार से, कितने पैसे लेगा इस पत्थर के?
कुम्हार ने कहा, आठ आने मिल जाएं तो बहुत।
लेकिन जौहरी को लोभ पकड़ा। उसने कहा, चार
आने में दे–दे, पत्थर है, करेगा भी क्या?


पर कुम्हार भी जिद बांधकर बैठ गया, छह आने से
कम न हुआ तो जौहरी ने सोचा कि ठीक है, थोड़ी
देर में अपने आप आकर बेच जाएगा। वह थोड़ा आगे
बढ़ गया। लेकिन कुम्हार वापस न लौटा तो
जौहरी लौटकर आया; लेकिन तब तक बाजी चूक
गई थी, किसी और ने खरीद लिया था। तो पूछा
उसने कि कितने में बेचा? उस कुम्हार ने कहा कि
हुजूर, एक रुपया मिला पूरा। आठ आने में बेच देता,
छह आने में बेच देता, बड़ा नुकसान हो जाता।
उस जौहरी की छाती पर कैसा सदमा लगा होगा!
उसने कहा, मूर्ख! तू बिलकुल गधा है। लाखों का
हीरा एक रुपए में बेच दिया?

उस कुम्हार ने कहा, हुजूर मैं अगर गधा न होता तो
लाखों के हीरे को गधे के गले में ही क्यों बांधता?
लेकिन आपके लिए क्या कहें? आपको पता था कि
लाखों का हीरा है और पत्थर की कीमत में भी लेने
को राजी न हुए!
धर्म का जिसे पता है, उसका जीवन अगर रूपांतरित
न हो तो उस जौहरी की भांति गधा है। जिन्हें
पता नहीं है, वे क्षमा के योग्य हैं; लेकिन जिन्हें
पता है, उनको क्या कहें?

दो ही संभावनाएं हैं : या तो उन्हें पता ही नहीं है;
सोचते हैं, पता है। और यही संभावना ज्यादा
सत्यतर मालूम होती है। या दूसरी संभावना है कि
उन्हें पता है और फिर भी गलत चले जाते हैं।
वह दूसरी संभावना संभव नहीं मालूम होती।
जौहरी ने तो शायद चार आने में खरीद लेने की
कोशिश की हो लाखों के हीरे को, लेकिन धर्म के
जगत में यह असंभव है कि तुम्हें पता हो और तुम उससे
विपरीत चले जाओ।

सुकरात का बड़ा बहुमूल्य वचन है: ज्ञान ही चरित्र
है। जिसने जान लिया, वह बदल गया। और अगर
जानकर भी न बदले हो, तो समझना कि जानने में
कहीं खोट है।

No comments:

Post a Comment

प्रभु की महिमा

* हरिनाम जप किस प्रकार करें * जप करने के समय स्मरण रखने वाली कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें : पवित्र हरिनाम को भी अर्च-विग्रह और पवित्र धाम ...