Saturday, 27 April 2019
Tuesday, 16 April 2019
मन की शांति
*एक राजा था जिसे पेटिंग्स से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसी पेंटिंग बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा।*
*फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपनी-अपनी पेंटिंग्स लेकर राजा के महल पहुंचे।*
*राजा ने एक-एक करके सभी पेंटिंग्स देखीं और उनमें से दो को अलग रखवा दिया।अब इन्ही दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था।*
*पहली पेंटिंग एक अति सुन्दर शांत झील की थी। उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी और उसके आस-पास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।*
*जो कोई भी इस पेटिंग को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छी पेंटिंग हो ही नहीं सकती।*
*दूसरी पेंटिंग में भी पहाड़ थे, पर वे बिलकुल रूखे, बेजान , वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमे बिजलियाँ चमक रही थीं…घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी… तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे… और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था।*
*जो कोई भी इस पेटिंग को देखता यही सोचता कि भला इसका “शांति” से क्या लेना देना… इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।*
*सभी आश्वस्त थे कि पहली पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को ही इनाम मिलेगा। तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और ऐलान किया कि दूसरी पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को वह मुंह माँगा इनाम देंगे।*
*हर कोई आश्चर्य में था।*
*पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, “लेकिन महाराज उस पेटिंग में ऐसा क्या है जो आपने उसे इनाम देने का फैसला लिया… जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरी पेंटिंग ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है?”*
*“आओ मेरे साथ!”, राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा।*
*दूसरी पेंटिंग के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक तरह झुके इस वृक्ष को देखो…देखो इसकी डाली पर बने इस घोसले को देखो… देखो कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेम से पूर्ण होकर अपने बच्चों को भोजन करा रही है…”*
*फिर राजा ने वहां उपस्थित सभी लोगों को समझाया-_शांत होने का मतलब ये नही है कि आप ऐसे स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं हो…कोई समस्या नहीं हो… जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो… जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो… शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें, अपने काम पर केन्द्रित रहें… अपने लक्ष्य की ओर अग्रसरित रहें।”*
*अब सभी समझ चुके थे कि दूसरी पेंटिंग को राजा ने क्यों चुना है*
*हर कोई अपनी जिंदगी में शांति चाहता है। पर अक्सर हम “शांति” को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं, और उसे बाहरी दुनिया में, पहाड़ों, झीलों में ढूंढते हैं। जबकि शांति पूरी तरह से हमारे अन्दर की चीज है, और हकीकत यही है कि तमाम दुःख-दर्दों, तकलीफों और दिक्कतों के बीच भी शांत रहना ही असल में शांत होना है*
Wednesday, 3 April 2019
कांगड़ा भूकंप 4 अप्रैल वर्ष 1905
***आज के ही दिन कांगड़ा में हुई थी भयानक तबाही
KangraUpdated
109 वर्ष पूर्व 4 अप्रैल 1905 को जिला कांगड़ा में आए भीषण भूकंप में 19277 लोग मौत की आगोश में समा गए थे। जबकि 5494 पालतू मवेशी भी मारे गए। यह भूकंप सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर आया। बताया जाता है कि इस त्रासदी में तहसील कांगड़ा के पठियार में 60, सकोह में 121, खनियारा में 671, उज्जैन 219, वीरता में 110, नरवाणा में 426 और योल में 97 पशु मारे गए। भूकंप की तीव्रता रिएक्टर पैमाने पर 7.8 मापी गई थी। कचहरी अड्डा निवासी धर्मपाल बताते हैं कि कांगड़ा का ऐेेेतिहासिक नगरकोट किला, बज्रेश्वरी मंदिर और मैकलोडगंज स्थित ऐतिहासिक चर्च बुरी तरह से ध्वस्त हो गए थे। उस समय धर्मशाला स्थित कैंट में यूरोपियन बैरक में रह रही सातवीं गोरखा राइफल के 272 जवानों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। ब्रिटिश सेना के बड़े अधिकारी और सैनिक इस भूकंप मेें मारे गए। भूकंप के समय मंडी रियासत के सुपरिंटेंडेंट मिल्लर और मंडी रियासत के तत्कालीन राजा भवानी सेन पालमपुर में डाक बंगला में ठहरे थे। डाक बंगला के मलबे में दबने के बावजूद दोनों बाल बाल बच गए। भूकंप के कारण मंडी रियासत में भी भारी जानमाल का नुकसान हुआ तथा1500 लोग मारे गए। जिस वर्ष यह भूकंप आया था, उस समय जिला कांगड़ा के जिलाधीश एम आई बैरिंग थे। बैरिंग ने 10 मार्च 1905 को जिलाधीश का पदभार ग्रहण किया था। सहायता एवं बचाव कार्यों के संचालन के लिए नूरपुर को अस्थायी तौर पर कुछ समय के लिए जिला मुख्यालय बनाया गया। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लाहौर के कमिश्नर टांग हरुवे की अध्यक्षता में सहायता एवं बचाव पार्टी का गठन किया। इस पार्टी में पुलिस एवं सेना के जवानों और स्वयं सेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को शामिल किया गया। इस भूकंप में कांगड़ा तहसील की ट्रेजरी का दफ्तर ही सुरक्षित रहा।
KangraUpdated
109 वर्ष पूर्व 4 अप्रैल 1905 को जिला कांगड़ा में आए भीषण भूकंप में 19277 लोग मौत की आगोश में समा गए थे। जबकि 5494 पालतू मवेशी भी मारे गए। यह भूकंप सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर आया। बताया जाता है कि इस त्रासदी में तहसील कांगड़ा के पठियार में 60, सकोह में 121, खनियारा में 671, उज्जैन 219, वीरता में 110, नरवाणा में 426 और योल में 97 पशु मारे गए। भूकंप की तीव्रता रिएक्टर पैमाने पर 7.8 मापी गई थी। कचहरी अड्डा निवासी धर्मपाल बताते हैं कि कांगड़ा का ऐेेेतिहासिक नगरकोट किला, बज्रेश्वरी मंदिर और मैकलोडगंज स्थित ऐतिहासिक चर्च बुरी तरह से ध्वस्त हो गए थे। उस समय धर्मशाला स्थित कैंट में यूरोपियन बैरक में रह रही सातवीं गोरखा राइफल के 272 जवानों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। ब्रिटिश सेना के बड़े अधिकारी और सैनिक इस भूकंप मेें मारे गए। भूकंप के समय मंडी रियासत के सुपरिंटेंडेंट मिल्लर और मंडी रियासत के तत्कालीन राजा भवानी सेन पालमपुर में डाक बंगला में ठहरे थे। डाक बंगला के मलबे में दबने के बावजूद दोनों बाल बाल बच गए। भूकंप के कारण मंडी रियासत में भी भारी जानमाल का नुकसान हुआ तथा1500 लोग मारे गए। जिस वर्ष यह भूकंप आया था, उस समय जिला कांगड़ा के जिलाधीश एम आई बैरिंग थे। बैरिंग ने 10 मार्च 1905 को जिलाधीश का पदभार ग्रहण किया था। सहायता एवं बचाव कार्यों के संचालन के लिए नूरपुर को अस्थायी तौर पर कुछ समय के लिए जिला मुख्यालय बनाया गया। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने लाहौर के कमिश्नर टांग हरुवे की अध्यक्षता में सहायता एवं बचाव पार्टी का गठन किया। इस पार्टी में पुलिस एवं सेना के जवानों और स्वयं सेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को शामिल किया गया। इस भूकंप में कांगड़ा तहसील की ट्रेजरी का दफ्तर ही सुरक्षित रहा।
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