Friday, 14 September 2018

जिंदगी की शाम ढलने को है

*ज़िन्दगी की शाम ढलने को है .. सावधान*

कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा ! 
पता नहीं समझती क्या है खुद को ? 
जब देखो झगड़ा..
सुकून से रहने नहीं देती ! बड़बड़ाते हुए वह घर से बाहर निकल गया ।

नजदीक के चाय के स्टॉल पर पहुँच कर चाय ऑर्डर की और सामने रखे स्टूल पर बैठ गया। 
"इतनी सर्दी में बाहर चाय पी रहे हो !"
उसने गर्दन घुमा कर देखा तो साथ के स्टूल पर बैठे बुजुर्ग उससे मुख़ातिब थे।
"आप भी तो इतनी सर्दी और इस उम्र में बाहर हैं !"

बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा...
मैं निपट अकेला । 
न कोई गृहस्थी, न साथी। 
तुम तो शादीशुदा लगते हो ।

पत्नी घर में जीने नहीं देती। हर समय चिकचिक। 
बाहर न भटकूँ तो क्या करूँ ! गर्म चाय के घूँट अंदर जाते ही दिल की  कड़वाहट निकल पड़ी।

बुजुर्ग अब थोड़ा संजीदा होकर बोले:
"पत्नी जीने नहीं देती ! बरखुरदार, ज़िन्दगी ही पत्नी से होती है । 
8 बरस हो गए हमारी पत्नी को गए हुए।"
बुजुर्ग ने ठंडी साँस के साथ अपनी वेदना छलकाते हुए कहा--जब ज़िंदा थी, 
कभी कद्र नहीं की। 
आज कम्बख़्त चली गयी तो भूलाई नहीं जाती । 
घर काटने को होता है। बच्चे अपने अपने काम में मस्त।"
आलीशान घर, धन दौलत सब है ! पर उसके बिना कुछ मज़ा नहीं...
यूँ ही कभी कहीं, कभी कहीं भटकता रहता हूँ।"

"कुछ अच्छा नही लगता, उसके जाने के बाद, पता चला वो धड़कन थी --- मेरे जीवन की ही नहीं, मेरे घर की भी ! सब बेजान हो गया  हैं... बुज़ुर्ग की आँखों में दर्द और आंसुओं का समंदर था।

उसने चाय वाले को पैसे दिए। नज़र भर बुज़ुर्ग को देखा। एक मिनट गंवाए बिना घर की ओर मुड़ गया।
चिंतित पत्नी दरवाजे पर ही खड़ी थी।
"कहाँ चले गए थे? जैकेट भी नहीं पहना, ठण्ड लग जाएगी तो?"

"तुम भी तो बिना स्वेटर के दरवाजे पर खड़ी हो।"
दोनों ने आँखों से एक दूसरे के प्यार को पढ़ लिया।

ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय !... 
कभी तो रुलाये कभी ये हँसाये !!! 
Himachal Flute
Studio Creation

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