Wednesday, 11 December 2024

अगर बुरी आदतों ने जिंदगी को जकड़ लिया है तो

कथा के अनुसार पुराने समय में एक पिता अपने बेटे की बुरी आदतों की वजह से परेशान था। वह कई बार उसे समझा चुका था, लेकिन बच्चा हर बार यही कहता था कि वह बड़ा होकर ये आदतें छोड़ देगा। एक दिन तंग आकर वह अपने नगर के प्रसिद्ध संत के पास पहुंचा। संत बहुत ही विद्वान और सरल स्वभाव वाले थे।

पिता ने अपने बेटे के बारे में संत को बताया। संत ने उससे कहा कि तुम कल बाग में अपने बेटे को मेरे पास भेज देना। अगले दिन पिता ने अपने बेटे को संत के पास बताए गए बाग में भेज दिया।

बच्चे ने संत को प्रणाम किया और दोनों बाग में टहलने लगे। कुछ देर बाद संत ने बच्चे को एक छोटा सा पौधा दिखाया और कहा कि इसे उखाड़ सकते हो?

बच्चे ने कहा कि ये कौन सा बड़ा काम है, मैं इसे अभी उखाड़ देता हूं और बच्चे ने पौधा उखाड़ दिया। थोड़ी देर बाद संत ने बच्चे को थोड़ा बड़ा पौधा दिखाया और उसे उखाड़ने के लिए बोला।

बच्चा खुश हो गया, उसे ये सब एक खेल की तरह लग रहा था। बच्चे ने पौधे को उखाड़ना शुरू किया तो उसे थोड़ी ज्यादा ताकत लगानी पड़ी, लेकिन उसने पौधा उखाड़ दिया। इसके बाद संत ने बच्चे को एक पेड़ दिखाया और कहा कि इसे उखाड़ दो। बच्चे ने पेड़ के तना पकड़ा, लेकिन वह उसे हिला भी नहीं सका। बच्चे ने कहा कि इस पेड़ को उखाड़ना असंभव है।

संत ने बच्चे से कहा कि ठीक इसी तरह बुरी आदतों को जितनी जल्दी छोड़ देंगे, उतना अच्छा रहेगा। जब बुरी आदतें नई होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, लेकिन आदतें जैसे-जैसे पुरानी होती जाएंगी, उन्हें छोड़ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। बच्चे को संत की बातें समझ आ गईं और उसने उसी दिन अपनी बुरी आदतें छोड़ने का संकल्प ले लिया।

राधा नाम कृष्ण से भी बड़ा क्यों है ?

जय श्रीराधे भक्तों अक्सर हमसे लोग पूछते हैं कि हम हमेशा राधे राधे ही क्यो बोलतें आज उन सबकों हमारी तरफ से भी इस लीला में जवाब मिल जाएगा

तीनों लोकों में राधा की स्तुति से देवर्षि नारद खीझ गए थे। उनकी शिकायत थी कि वह तो कृष्ण से अथाह प्रेम करते हैं फिर उनका नाम कोई क्यों नहीं ले !

हर भक्त ‘राधे-राधे’ क्यों करता रहता है। वह अपनी यह व्यथा लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे।
नारदजी ने देखा कि श्रीकृष्ण भयंकर सिर दर्द से कराह रहे हैं। देवर्षि के हृदय में भी टीस उठी।

 उन्होंने पूछा, ‘भगवन! क्या इस सिर दर्द का कोई उपचार है। मेरे हृदय के रक्त से यह दर्द शांत हो जाए तो मैं अपना रक्त दान कर सकता हूं।’ श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया,

 ‘नारदजी, मुझे किसी के रक्त की आवश्यकता नहीं है। मेरा कोई भक्त अपना चरणामृत यानी अपने पांव धोकर पिला दे, तो मेरा दर्द शांत हो सकता है।’

नारद ने मन में सोचा, ‘भक्त का चरणामृत, वह भी भगवान के श्रीमुख में। ऐसा करने वाला तो घोर नरक का भागी बनेगा। भला यह सब जानते हुए नरक का भागी बनने को कौन तैयार हो ?’

 श्रीकृष्ण ने नारद से कहा कि वह रुक्मिणी के पास जाकर सारा हाल सुनाएं तो संभवत: रुक्मिणी इसके लिए तैयार हो जाएं। 

नारदजी रुक्मिणी के पास गए। उन्होंने रुक्मिणी को सारा वृत्तांत सुनाया तो रुक्मिणी बोलीं, ‘नहीं, नहीं! देवर्षि, मैं यह पाप नहीं कर सकती।’

नारद ने लौटकर रुक्मिणी की बात श्रीकृष्ण के पास रख दी। अब श्रीकृष्ण ने उन्हें राधा के पास भेजा। राधा ने जैसे ही सुना, तत्काल एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने दोनों पैर डुबोए। फिर वह नारद से बोली,

 ‘देवर्षि, इसे तत्काल श्रीकृष्ण के पास ले जाइए। मैं जानती हूं कि भगवान को अपने पांव धोकर पिलाने से मुझे रौरव नामक नरक में भी ठौर नहीं मिलेगा।
 
लेक़िन अपने प्रियतम के सुख के लिए मैं अनंत युगों तक नरक की यातना भोगने को तैयार हूं।’ अब देवर्षि समझ गए कि तीनों लोकों में राधा के प्रेम के स्तुतिगान क्यों हो रहे हैं।

 उन्होंने भी अपनी वीणा उठाई और राधा की स्तुति गाने लगे। और यही कारण है हम भी अपने प्यारे की खुशी के लिए सिर्फ राधा नाम की रटना लगाते हैं

 "श्री" का अर्थ है "शक्ति" अर्थात "राधा जी" कृष्ण यदि शब्द हैं तो राधा अर्थ हैं। कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत हैं, कृष्ण वंशी हैं तो राधा स्वर हैं, कृष्ण समुद्र हैं तो राधा तरंग हैं, कृष्ण पुष्प हैं तो राधा उस पुष्प कि सुगंध हैं। 

राधा जी कृष्ण जी कि अल्हादिनी शक्ति हैं। वह दोनों एक दूसरे से अलग हैं ही नहीं। ठीक वैसे जैसे शिव और हरि एक ही हैं | भक्तों के लिए वे अलग-अलग रूप धारण करते हैं, अलग-अलग लीलाएं करते हैं।

जहाँ कोई आकांक्षा नहीं, जहाँ कोई वासना नहीं, जहाँ अहम् का सर्वथा विस्मरण - समर्पण है, जहाँ केवल प्रेमास्पद के सुख की स्मृति है और कुछ भी नहीं - यह एक विचित्र धारा है और इस धारा का मूर्तिमान रूप ही श्री राधा है

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बादशाह का असली रूप

एक बादशाह की आदत थी, कि वह भेस बदलकर लोगों की खैर-ख़बर लिया करता था,एक दिन अपने वज़ीर के साथ गुज़रते हुए शहर के किनारे पर पहुंचा तो देखा एक आदमी गिरा पड़ा हैl

बादशाह ने उसको हिलाकर देखा तो वह मर चुका था ! लोग उसके पास से गुज़र रहे थे, बादशाह ने लोगों को आवाज़ दी लेकिन कोई भी उसके नजदीक नहीं आया क्योंकि लोग बादशाह को पहचान ना सके ।

बादशाह ने वहां रह रहे लोगों से पूछा क्या बात है?  इस को किसी ने क्यों नहीं उठाया? लोगों ने कहा यह बहुत बुरा और गुनाहगार इंसान है ।।

बादशाह ने कहा क्या ये "इंसान" नहीं है? 
और उस आदमी की लाश उठाकर उसके घर पहुंचा दी, और उसकी पत्नी को लोगों के रवैये के बारे में बताया ।।।

 उसकी पत्नी अपने पति की लाश देखकर रोने लगी, और कहने लगी "मैं गवाही देती हूं मेरा पति बहुत नेक इंसान है"!!!!

 इस बात पर बादशाह को बड़ा ताज्जुब हुआ कहने लगा "यह कैसे हो सकता है? लोग तो इसकी बुराई कर रहे थे और तो और इसकी लाश को हाथ तक लगाने को भी तैयार ना थे?"

उसकी बीवी ने कहा "मुझे भी लोगों से यही उम्मीद थी, दरअसल हकीकत यह है कि मेरा पति हर रोज शहर के शराबखाने में जाता शराब खरीदता और घर लाकर नालियों में डाल देता और कहता कि चलो कुछ तो गुनाहों का बोझ इंसानों से हल्का हुआ,

और रात में इसी तरह एक बुरी औरत यानी वेश्या के पास जाता और उसको एक रात की पूरी कीमत देता और कहता कि अपना दरवाजा बंद कर ले, कोई तेरे पास ना आए घर आकर कहता ख़ुदा का शुक्र है,आज उस औरत और नौजवानों के गुनाहों का मैंने कुछ बोझ हल्का कर दिया, लोग उसको उन जगहों पर जाता देखते थे,

मैं अपने पति से कहती "याद रखो जिस दिन तुम मर गए लोग तुम्हें नहलाने तक नहीं आएंगे,ना तुम्हारी अर्थी को कंधा देने आएंगे । वह हंसते और मुझसे कहते कि घबराओ नहीं तुम देखोगी कि मेरी अर्थी वक्त का बादशाह और नेक लोग उठाएंगे....

यह सुनकर बादशाह रो पड़ा और कहने लगा मैं बादशाह हूं, कल हम इसको नहलायेंगे, इसकी अर्थी को कंधा देंगे और इसका दाह संस्कार भी करवाएंगेl

आज हम बज़ाहिर कुछ देखकर या दूसरों से कुछ सुनकर अहम फैसले कर बैठते हैं अगर हम दूसरों के दिलों के भेद जान जाएं तो हमारी ज़बाने गूंगी हो जाएं, 

किसी को गलत समझने से पहले देख लिया करें कि वह ऐसा है भी कि नहीं? और हमारे सही या ग़लत कहने से सही ग़लत नहीं हो जायेगा और  जो ग़लत है वो सही नहीं हो जायेगा ।
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प्रभु की महिमा

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