Thursday, 2 January 2025

प्रभु की महिमा

*हरिनाम जप किस प्रकार करें*

जप करने के समय स्मरण रखने वाली कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें :

पवित्र हरिनाम को भी अर्च-विग्रह और पवित्र धाम के समान ही गुणनिधि समझना ।
जप भी राधा-कृष्ण की पूजा है, इसलिए हमें पूर्ण उद्यम के साथ जप करना चाहिए ।
भगवान कृष्ण हमारे भाव और प्रयासों के अनुरूप ही आदान-प्रदान करते हैं । यह हम में जितना अधिक होगा, भगवान भी उतना अधिक प्रतिदान करेंगे । भगवान का प्रतिदान वास्तव में कई गुना अधिक होता है क्योंकि इस सम्बन्ध को प्रगाढ़ करने के लिए वे  हमसे कही अधिक आतुर रहते हैं । 

जप कोई प्रक्रिया नहीं है यह एक सम्बन्ध है । जब हम जप करते हैं तो हम भगवान से टूटे हुए सम्बन्ध को ठीक कर रहे होते हैं । इसलिए जब हम भगवान को पुकारते हैं तो पश्चाताप और समर्पण भाव से पुकारना चाहिए । समर्पण भरी पुकार में इस बात का पश्चाताप हो कि भगवान से विमुख होकर हमने कितने जन्म यूँही व्यर्थ गवाँ दिए ।

अपराध-सहित जप और अपराध-रहित जप में मात्र हमारे सच्चे प्रयास का अंतर है । गंभीर प्रयास ही प्रेम-भक्ति की सीढ़ी है । जब हम अपराधों से बचने का निरंतर प्रयास करते हैं तो वे स्वतः ही समाप्त होने लगते है ।
मालाओं की गिनती से अधिक महत्वपूर्ण उनकी गुणवत्ता है । अगर गुणवत्ता अच्छी है तो गिनती स्वतः ही बढ़ जाएगी । अगर गिनती अधिक है तो कई बार गुणवत्ता में गिरावट आती है ।

जप करते समय कभी भी यह विचार मन में न लाएं की “मुझे करना पड़ रहा है”, बल्कि विचार ऐसे होने चाहिए की “मैं जप करना चाहता हूँ”। अगर आपको यह लगे की जप “करना पड़ रहा है” तो बेहतर होगा कि उस समय आप जप ना ही करें । भगवान कृष्ण से सम्बन्ध बनाने के लिए कोई आपको बाध्य न करे आप स्वयं ही इस सम्बन्ध को बढाने के लिए आतुर होने चाहिए, तभी भगवान प्रतिदान करेंगे ।

जब आप जप कर रहे हों तब केवल जप ही करें । मन का जप में उपस्थित रहना ही जप के प्रति न्याय है । अगर आप सचमुच गंभीर होंगे तो वातावरण स्वतः ही अनुकूल बन जायेगा और आपको जप के लिए अधिक समय भी मिलेगा ।
जप ही आपका दिनभर में सबसे प्रिय कार्य हो । जब समय मिले तब जप कर लिया । और जब जप कर रहे हों तो सम्पूर्ण संसार प्रतीक्षा कर सकता है ।

माया और कृष्ण, दोनों एक ही समय पर नहीं पाये जा सकते । जब हम भौतिक विकर्षणों को अधिक महत्त्व देते हैं तब भगवान कृष्ण हमारे जीवन और जप दोनों से विलुप्त हो जाते हैं! 

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"हरि ॐ "

Wednesday, 11 December 2024

अगर बुरी आदतों ने जिंदगी को जकड़ लिया है तो

कथा के अनुसार पुराने समय में एक पिता अपने बेटे की बुरी आदतों की वजह से परेशान था। वह कई बार उसे समझा चुका था, लेकिन बच्चा हर बार यही कहता था कि वह बड़ा होकर ये आदतें छोड़ देगा। एक दिन तंग आकर वह अपने नगर के प्रसिद्ध संत के पास पहुंचा। संत बहुत ही विद्वान और सरल स्वभाव वाले थे।

पिता ने अपने बेटे के बारे में संत को बताया। संत ने उससे कहा कि तुम कल बाग में अपने बेटे को मेरे पास भेज देना। अगले दिन पिता ने अपने बेटे को संत के पास बताए गए बाग में भेज दिया।

बच्चे ने संत को प्रणाम किया और दोनों बाग में टहलने लगे। कुछ देर बाद संत ने बच्चे को एक छोटा सा पौधा दिखाया और कहा कि इसे उखाड़ सकते हो?

बच्चे ने कहा कि ये कौन सा बड़ा काम है, मैं इसे अभी उखाड़ देता हूं और बच्चे ने पौधा उखाड़ दिया। थोड़ी देर बाद संत ने बच्चे को थोड़ा बड़ा पौधा दिखाया और उसे उखाड़ने के लिए बोला।

बच्चा खुश हो गया, उसे ये सब एक खेल की तरह लग रहा था। बच्चे ने पौधे को उखाड़ना शुरू किया तो उसे थोड़ी ज्यादा ताकत लगानी पड़ी, लेकिन उसने पौधा उखाड़ दिया। इसके बाद संत ने बच्चे को एक पेड़ दिखाया और कहा कि इसे उखाड़ दो। बच्चे ने पेड़ के तना पकड़ा, लेकिन वह उसे हिला भी नहीं सका। बच्चे ने कहा कि इस पेड़ को उखाड़ना असंभव है।

संत ने बच्चे से कहा कि ठीक इसी तरह बुरी आदतों को जितनी जल्दी छोड़ देंगे, उतना अच्छा रहेगा। जब बुरी आदतें नई होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, लेकिन आदतें जैसे-जैसे पुरानी होती जाएंगी, उन्हें छोड़ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। बच्चे को संत की बातें समझ आ गईं और उसने उसी दिन अपनी बुरी आदतें छोड़ने का संकल्प ले लिया।

राधा नाम कृष्ण से भी बड़ा क्यों है ?

जय श्रीराधे भक्तों अक्सर हमसे लोग पूछते हैं कि हम हमेशा राधे राधे ही क्यो बोलतें आज उन सबकों हमारी तरफ से भी इस लीला में जवाब मिल जाएगा

तीनों लोकों में राधा की स्तुति से देवर्षि नारद खीझ गए थे। उनकी शिकायत थी कि वह तो कृष्ण से अथाह प्रेम करते हैं फिर उनका नाम कोई क्यों नहीं ले !

हर भक्त ‘राधे-राधे’ क्यों करता रहता है। वह अपनी यह व्यथा लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे।
नारदजी ने देखा कि श्रीकृष्ण भयंकर सिर दर्द से कराह रहे हैं। देवर्षि के हृदय में भी टीस उठी।

 उन्होंने पूछा, ‘भगवन! क्या इस सिर दर्द का कोई उपचार है। मेरे हृदय के रक्त से यह दर्द शांत हो जाए तो मैं अपना रक्त दान कर सकता हूं।’ श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया,

 ‘नारदजी, मुझे किसी के रक्त की आवश्यकता नहीं है। मेरा कोई भक्त अपना चरणामृत यानी अपने पांव धोकर पिला दे, तो मेरा दर्द शांत हो सकता है।’

नारद ने मन में सोचा, ‘भक्त का चरणामृत, वह भी भगवान के श्रीमुख में। ऐसा करने वाला तो घोर नरक का भागी बनेगा। भला यह सब जानते हुए नरक का भागी बनने को कौन तैयार हो ?’

 श्रीकृष्ण ने नारद से कहा कि वह रुक्मिणी के पास जाकर सारा हाल सुनाएं तो संभवत: रुक्मिणी इसके लिए तैयार हो जाएं। 

नारदजी रुक्मिणी के पास गए। उन्होंने रुक्मिणी को सारा वृत्तांत सुनाया तो रुक्मिणी बोलीं, ‘नहीं, नहीं! देवर्षि, मैं यह पाप नहीं कर सकती।’

नारद ने लौटकर रुक्मिणी की बात श्रीकृष्ण के पास रख दी। अब श्रीकृष्ण ने उन्हें राधा के पास भेजा। राधा ने जैसे ही सुना, तत्काल एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने दोनों पैर डुबोए। फिर वह नारद से बोली,

 ‘देवर्षि, इसे तत्काल श्रीकृष्ण के पास ले जाइए। मैं जानती हूं कि भगवान को अपने पांव धोकर पिलाने से मुझे रौरव नामक नरक में भी ठौर नहीं मिलेगा।
 
लेक़िन अपने प्रियतम के सुख के लिए मैं अनंत युगों तक नरक की यातना भोगने को तैयार हूं।’ अब देवर्षि समझ गए कि तीनों लोकों में राधा के प्रेम के स्तुतिगान क्यों हो रहे हैं।

 उन्होंने भी अपनी वीणा उठाई और राधा की स्तुति गाने लगे। और यही कारण है हम भी अपने प्यारे की खुशी के लिए सिर्फ राधा नाम की रटना लगाते हैं

 "श्री" का अर्थ है "शक्ति" अर्थात "राधा जी" कृष्ण यदि शब्द हैं तो राधा अर्थ हैं। कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत हैं, कृष्ण वंशी हैं तो राधा स्वर हैं, कृष्ण समुद्र हैं तो राधा तरंग हैं, कृष्ण पुष्प हैं तो राधा उस पुष्प कि सुगंध हैं। 

राधा जी कृष्ण जी कि अल्हादिनी शक्ति हैं। वह दोनों एक दूसरे से अलग हैं ही नहीं। ठीक वैसे जैसे शिव और हरि एक ही हैं | भक्तों के लिए वे अलग-अलग रूप धारण करते हैं, अलग-अलग लीलाएं करते हैं।

जहाँ कोई आकांक्षा नहीं, जहाँ कोई वासना नहीं, जहाँ अहम् का सर्वथा विस्मरण - समर्पण है, जहाँ केवल प्रेमास्पद के सुख की स्मृति है और कुछ भी नहीं - यह एक विचित्र धारा है और इस धारा का मूर्तिमान रूप ही श्री राधा है

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बादशाह का असली रूप

एक बादशाह की आदत थी, कि वह भेस बदलकर लोगों की खैर-ख़बर लिया करता था,एक दिन अपने वज़ीर के साथ गुज़रते हुए शहर के किनारे पर पहुंचा तो देखा एक आदमी गिरा पड़ा हैl

बादशाह ने उसको हिलाकर देखा तो वह मर चुका था ! लोग उसके पास से गुज़र रहे थे, बादशाह ने लोगों को आवाज़ दी लेकिन कोई भी उसके नजदीक नहीं आया क्योंकि लोग बादशाह को पहचान ना सके ।

बादशाह ने वहां रह रहे लोगों से पूछा क्या बात है?  इस को किसी ने क्यों नहीं उठाया? लोगों ने कहा यह बहुत बुरा और गुनाहगार इंसान है ।।

बादशाह ने कहा क्या ये "इंसान" नहीं है? 
और उस आदमी की लाश उठाकर उसके घर पहुंचा दी, और उसकी पत्नी को लोगों के रवैये के बारे में बताया ।।।

 उसकी पत्नी अपने पति की लाश देखकर रोने लगी, और कहने लगी "मैं गवाही देती हूं मेरा पति बहुत नेक इंसान है"!!!!

 इस बात पर बादशाह को बड़ा ताज्जुब हुआ कहने लगा "यह कैसे हो सकता है? लोग तो इसकी बुराई कर रहे थे और तो और इसकी लाश को हाथ तक लगाने को भी तैयार ना थे?"

उसकी बीवी ने कहा "मुझे भी लोगों से यही उम्मीद थी, दरअसल हकीकत यह है कि मेरा पति हर रोज शहर के शराबखाने में जाता शराब खरीदता और घर लाकर नालियों में डाल देता और कहता कि चलो कुछ तो गुनाहों का बोझ इंसानों से हल्का हुआ,

और रात में इसी तरह एक बुरी औरत यानी वेश्या के पास जाता और उसको एक रात की पूरी कीमत देता और कहता कि अपना दरवाजा बंद कर ले, कोई तेरे पास ना आए घर आकर कहता ख़ुदा का शुक्र है,आज उस औरत और नौजवानों के गुनाहों का मैंने कुछ बोझ हल्का कर दिया, लोग उसको उन जगहों पर जाता देखते थे,

मैं अपने पति से कहती "याद रखो जिस दिन तुम मर गए लोग तुम्हें नहलाने तक नहीं आएंगे,ना तुम्हारी अर्थी को कंधा देने आएंगे । वह हंसते और मुझसे कहते कि घबराओ नहीं तुम देखोगी कि मेरी अर्थी वक्त का बादशाह और नेक लोग उठाएंगे....

यह सुनकर बादशाह रो पड़ा और कहने लगा मैं बादशाह हूं, कल हम इसको नहलायेंगे, इसकी अर्थी को कंधा देंगे और इसका दाह संस्कार भी करवाएंगेl

आज हम बज़ाहिर कुछ देखकर या दूसरों से कुछ सुनकर अहम फैसले कर बैठते हैं अगर हम दूसरों के दिलों के भेद जान जाएं तो हमारी ज़बाने गूंगी हो जाएं, 

किसी को गलत समझने से पहले देख लिया करें कि वह ऐसा है भी कि नहीं? और हमारे सही या ग़लत कहने से सही ग़लत नहीं हो जायेगा और  जो ग़लत है वो सही नहीं हो जायेगा ।
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Wednesday, 10 June 2020

जिसने ईश्वर को नहीं देखा

*"होत वही जो राम रची राखा"*

एक  बार  स्वर्ग  से  घोषणा हुई  कि  *भगवान  सेब  बॉटने आ  रहे  है*  सभी  लोग भगवान  के  प्रसाद  के  लिए तैयार  हो  कर  लाइन लगा कर  खड़े  हो  गए।

*एक  छोटी  बच्ची  बहुत उत्सुक  थी*  क्योंकि  वह पहली  बार  भगवान  को देखने  जा  रही  थी।

एक  बड़े  और  सुंदर  सेब  के साथ  साथ  भगवान  के दर्शन  की  कल्पना  से  ही खुश  थी।
अंत  में  प्रतीक्षा  समाप्त  हुई। बहुत  लंबी  कतार  में  जब उसका  नम्बर  आया  तो *भगवान  ने  उसे  एक  बड़ा और  लाल  सेब  दिया।*

लेकिन  जैसे  ही  उसने  सेब पकड़ कर  लाइन  से  बाहर निकली  उसका  *सेब  हाथ  से छूट कर  कीचड़  में  गिर गया*।  बच्ची  उदास  हो  गई।

अब  उसे  दुबारा  से  लाइन  में  लगना  पड़ेगा। दूसरी लाइन  पहली  से  भी  लंबी थी। लेकिन  कोई  और  रास्ता  नहीं  था।

सब  लोग  ईमानदारी  से अपनी  बारी  बारी  से  सेब लेकर  जा  रहे  थे।

अन्ततः  वह  *बच्ची  फिर  से लाइन  में  लगी*  और  अपनी बारी  की  प्रतीक्षा  करने लगी।

आधी  क़तार  को  सेब  मिलने  के  बाद  *सेब  ख़त्म होने  लगे*। अब  तो  बच्ची बहुत  उदास  हो  गई।

उसने सोचा  कि  उसकी  बारी  आने  तक  तो  सब  सेब  खत्म  हो  जाएंगे।  लेकिन  वह  ये  नहीं  जानती थी  कि  भगवान  के  भंडार कभी  ख़ाली  नही  होते।

जब  तक  उसकी  बारी  आई  तो  और  भी  नए  सेब  आ गए ।

भगवान  तो  अन्तर्यामी  होते हैं। बच्ची  के  मन  की  बात जान  गए।उन्होंने  इस  बार बच्ची  को  सेब  देकर  कहा कि  *पिछली  बार  वाला  सेब एक  तरफ  से  सड़  चुका  था*।

 तुम्हारे  लिए  सही  नहीं  था इसलिए  *मैने  ही  उसे  तुम्हारे हाथों  गिरवा  दिया  था*। दूसरी  तरफ  लंबी  कतार  में तुम्हें  इसलिए  लगाया क्योंकि  नए  सेब  अभी पेडों पर  थे।  उनके  आने  में  समय  बाकी  था। इसलिए तुम्हें  अधिक  प्रतीक्षा  करनी पड़ी।

*ये  सेब  अधिक  लाल, सुंदर और  तुम्हारे  लिए  उपयुक्त है।*

भगवान  की  बात  सुनकर बच्ची  संतुष्ट  हो  कर  गई ।

*इसी  प्रकार यदि आपके किसी काम  में  विलंब हो रहा  है  तो  उसे  भगवान  की इच्छा  मान कर  स्वीकार करें । जिस  प्रकार  हम  अपने बच्चों  को  उत्तम  से  उत्तम देने  का  प्रयास  करते  हैं।*
*उसी  प्रकार  भगवान भी अपने  बच्चों  को  वही  देंगे जो  उनके  लिए  उत्तम  होगा। ईमानदारी  से  अपनी  बारी की  प्रतीक्षा  करें*

*"ईश्वर" से शिकायत क्यों है ? ईश्वर ने पेट भरने की जिम्मेदारी ली है..पेटियां भरने की नहीं...*
*ह्रदय कैसे चल रहा है,यह डाक्टर बता देंगे, परन्तु ह्रदय में क्या चल रहा है,यह तो स्वयं को ही देखना है।*

इस कठिन समय मे संयम रखियेगा, ईमानदारी तथा दयालुता से जरूरतमंद के लिए भगवान बनकर उनकी मदद कीजियेगा, आपका भी परमपिता ईश्वर ही ध्यान रखेंगे।



Wednesday, 29 April 2020

40 हजार का ईनाम

       सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम:*

राम गोपाल सिंह  एक सेवानिवृत अध्यापक हैं ।

सुबह  दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो  रहे थे ।
शाम के सात बजते- बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे, जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं।

परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था ।

उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी, जिसमें इनके पालतू कुत्ते "मार्शल" का बसेरा है ।

राम गोपाल जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे और अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया "मार्शल"।

इस कमरे में अब राम गोपाल जी, उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं ।
दोनों बेटों -बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गये l

 सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन कर के सूचना दे दी गयी ।

खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी, लेकिन मिलने कोई नहीं आया ।

साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए,  हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आई और राम गोपाल जी की पत्नी से बोली -
"अरे कोई इसके पास दूर से खाना भी सरका दो, वे अस्पताल वाले तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के ।"

अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देनें  के लिये कौन जाए  ?

 बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दिया l

 अब राम गोपाल जी की पत्नी के हाथ, थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों ।

इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली-
 "अरी तेरा तो  पति है, तू भी ........।  मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे, वो अपने आप उठाकर खा लेगा ।"

सारा वार्तालाप राम  गोपाल जी चुपचाप सुन रहे थे, उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से  उन्होंने कहा कि-
"कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है, मुझे भूख भी नहीं है ।"

इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और राम गोपाल जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है ।

राम गोपाल जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं ।

 पोती -पोते प्रथम तल की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ दिखाई पड़ती हैं ।

घर के दरवाजे से हटकर बरामदे पर, दोनों बेटे काफी दूर अपनी माँ के साथ खड़े थे।
विचारों का तूफान राम गोपाल  जी के अंदर उमड़ रहा था। 
उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए टाटा एवं बाई बाई कहा ।

एक क्षण को उन्हें लगा कि 'जिंदगी ने  अलविदा कह दिया ।'

राम गोपाल जी की आँखें लबलबा उठी ।

 उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये । 

उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से  भरी बाल्टी घर की उस  देहरी पर उलेड दी, जिसको राम गोपाल चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे। 

इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी, लेकिन ये दृश्य देखकर कुत्ता भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे हो लिया, जो राम गोपाल जी को अस्पताल लेकर जा रही थी।

राम गोपाल जी अस्पताल में 14 दिनों के  अब्ज़र्वेशन पीरियड में  रहे ।

उनकी सभी जाँच सामान्य थी ।
उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी ।

जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको अस्पताल के गेट पर उनका कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया ।

दोनों एक दूसरे से लिपट गये ।
एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी ।

जब तक उनके बेटों की लम्बी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती, तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे ।

उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये ।

आज उनके फोटो के साथ उनकी  गुमशुदगी की खबर  छपी है l

*अखबार में लिखा है कि   सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा ।*

40 हजार - हाँ पढ़कर  ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी, जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते गाते उड़ा दिया करते थे।

एक बार रामगोपाल जी के जगह पर स्वयं को खड़ा करो l
कल्पना करो कि इस कहानी में किरदार आप हो ।
आपका सारा अहंकार और सब मोहमाया खत्म हो जाएगा।

इसलिए मैं आप सभी से निवेदन करता हूं कि कुछ पुण्य कर्म कर लिया कीजिए l

जीवन में कुछ नहीं है l

कोई अपना नहीं है l

*जब तक स्वार्थ है, तभी तक आपके सब हैं।*

जीवन एक सफ़र है, मौत उसकी मंजिल है l

मोक्ष का द्वार कर्म है।

यही सत्य है।
सत्य यही है।।
🚩🙏जय भोले

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Friday, 24 April 2020

संगीत से सच्ची मित्रता

कहते हैं अगर इंसान का रिश्ता संगीत के साथ होता है उस इंसान के समीप तनाव कभी भी नहीं आता है ! भागदौड़ की जिंदगी में इंसान को कुछ वक्त अपने लिए भी रखना चाहिए! आप उस वक्त में मधुर संगीत सुनना चाहिए ताकि मन की ज्ञानेंद्रियों को शांति मिल सके और तनाव से मुक्त होकर के निर्मल हो सके! देखिए यह मधुर वीडियो यह निश्चित है आपको आनंद आएगा!

निमन दिए हुए लिंक पर क्लिक करें!
https://youtu.be/C9owb1lp_Zc

प्रभु की महिमा

* हरिनाम जप किस प्रकार करें * जप करने के समय स्मरण रखने वाली कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें : पवित्र हरिनाम को भी अर्च-विग्रह और पवित्र धाम ...